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Posts Tagged ‘आतंकवाद’

बराक ओबामा को शांति का और नोबेल पुरस्कार कमेटी को हास्य-व्यंग्य का नोबेल (व्यंग्य/कार्टून)

Posted by K M Mishra on October 10, 2009

धन्य हैं नोबेल प्राइज कमेटी वाले भी । युध्द, गरीबी, भुखमरी, स्वाइन फ्लू, आतंकवाद, प्राकृतिक आपदाओं आदि से त्रस्त दुनिया के चहरे पर एक अदद मुस्कान लाने के लिये वो किसी भी हद तक जा सकते हैं । वो चले भी गये । कामयाबी ने चरण चूमे और ओबामा को मात्र तीन भाषणों के लिये शांति का नोबेल दे दिया गया । ओबामा को शांति का और पुरस्कार कमेटी को दुनिया को हंसाने के लिये हास्य-व्यंग्य का नोबेल ।

प्राग, काहिरा और संयुक्त राष्ट्रसंघ में शांति और परमाणु निरस्त्रीकरण की माला जपने के लिये ओबामा को यह पुरस्कार दिया गया है लेकिन पुरस्कार कमेटी वालों से एक भारी चूक हो गयी । वो मनमोहन सिंह को भूल गये जिन्होंने अमेरिका के चरके मे न्यूक्लियर डील पर साइन करके भारत को बधिया बनाने में अमेरिका की मदद की । हमने प्लूटोनियम आधारित साइरस न्यूक्लियर रियेक्टर को बंद कर दिया है जिससे हमें परमाणु बम के लिये प्लूटोनियम मिलता था । शांति का नोबेल सम्मिलित रूप से ओबामा और मनमोहन दोनो को मिलना चाहिये था ।

महात्मा गांधी के साथ डिनर का ख्वाब देखने वाले को आठ माह में ही नोबेल पुरस्कार मिल गया और बापू जीवन भर सत्य, अहिंसा के लिये अनशन करते रह गये और मिली भी तो गोडसे के पिस्तौल से निकली गोलियां । भारत के हाथ से परमाणु बम की ताकत छीन कर बापू की लाठी पकड़ाने के लिये ही ओबामा को नोबेल मिला है । जो देश असहयोग आंदोलन का जन्मदाता रहा हो उसके हाथ में परमाणु बम शोभा नहीं देते । परमाणु बम बने हैं पाकिस्तान, ईरान, म्यांमार, चीन और अलकायदा के लिये । अब्दुल कादिर खान, मुशर्रफ चाहे मक्का मदीने में खड़े हो कर चिल्लायें कि हमने ही परमाणु बम का फार्मूला दूसरे देशों को गिफ्ट किया था तो भी अमेरिका को उनकी बात पर विश्वास नहीं होगा (मजाक करने से बाज नहीं आते हरामखोर) ।

आजकल दलाई लामा ओबाम के बुलावे पर वाशिंगटन की खाक छान रहे हैं । चीन ने घुड़क दिया है इसलिये शांति के पुजारी ओबामा अब लामा से मिलने में हिचक रहे हैं । दुनिया में शांति तो बनी रहेगी पर घर की शांति में खलल पड़ गयी तो मन की शांति भी जाती रहेगी ।


<=सर जी जो 14 लाख डालर आपको मिल रहे हैं इनाम के वो हमें दे दीजिये । उनसे हम कुछ हथियार खरीद लेंगे तालिबान और भारत से लड़ने के लिये । इन हथियारों से हमारे मन को शांति मिलेगी और भारत की नींद हराम होगी ।

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पाकिस्तान के सत्य की जीत । (व्यंग्य/कार्टून)

Posted by K M Mishra on September 27, 2009

नवरात्र के नौ दिन अत्यंत शुभ और चमत्कारी होते हैं । श्रध्दालु नौ दिन व्रत रखते हैं, देवी का पाठ करते हैं और मनमांगी मुराद पाते हैं । दशहरा असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक माना जाता है । जो सत्य पर डटा रहता है उसकी विजय निश्चित है । महात्मा गांधी सत्य की माला जपते-जपते शहीद हो गये पर जितनी कद्र उनके सिध्दांतों की पड़ोसी दुश्मन देश पाकिस्तान ने की उसका चारआने भी अगर भारत सरकार ने की होती तो आज ये दिन न देखना पड़ता ।

पड़ोसी दुनिया जहान की फिक्र भुला कर सत्य पर डटा हुआ है । जो होगा देखा जायेगा । कोई गुनाह थोड़े ही कर रहे हैं । मुहब्बत और जंग में सब जायज होता है । हम न छोड़ेंगे सच का रास्ता, भले ही ये रास्ता कांटों भरे जंगल से गुजरता हो । दुनिया से जो उखाड़ते बने उखाड़ ले । डर-वर नहीं लगता है हमको सच बोलने से । साला एक झूठ के लिये हजार झूठ बोलने पड़ते हैं । झूठ बोल कर भी देख लिया । सौ स्टेटमेंट देने पड़ते हैं । अब झूठमूठ का कोई लफड़ा नहीं पालते हम लोग । सीधे सीधे सच का सामना करते हैं । इकदम खरा, 24 कैरेट सोने के माफिक सच । देशहित में हम दुनिया में आग लगा रहे हैं । पड़ोसी का घर फूंक रहे हैं । हथियार जमा कर रहे हैं । परमाणु बम की तकनीकि अपने जैसे हरामी मुल्कों को बेच रहे हैं । आतंक की सबसे बड़ी फैक्ट्री हमने सरकारी पैसे से लगाई है और माल सारी दुनिया में एक्सपोर्ट कर रहे हैं । इस्लाम का परचम लहराने के लिये और भी जो जरूरी होगा, वह भी करेंगे । आतंक फैलाना हमारा जन्मसिध्द अधिकार है । हमारा जन्म ही आतंक फैला कर हुआ था । जिन्ना ने डाइरेक्ट एक्शन लिया था हम डाइरेक्ट-इनडाइरेक्ट दोनो तरह से आतंक की फसल तैयार करते हैं । आतंक हमारा राष्ट्रीय उद्योग है । पब्लिक सेक्टर और प्राइवेट सेक्टर दोनो ही इस धंधे में लगे हुये हैं और जो इन दोनो में नहीं आते उनकी हम आतंक का लघु उद्योग लगाने में मदद करते हैं, न सिर्फ पाकिस्तान में बल्कि अफ्गानिस्तान, कश्मीर, सूडान, लीबिया, उत्तर कोरिया, तमाम गरीब अफ्रीकी देशों में । (अब क्या अपने ग्राहकों की पूरी लिस्ट ही आप को सौंप दें ।)

इधर एक हम हैं । सच भी ऐसे बोलेंगे जैसे झूठ बोल रहें हों । नजरें झुका कर । महीन दबी आवाज में । चोरों की तरह । बड़े मुल्कों की शर्ट खींच खींच कर बता रहे हैं – सर जी एक हमारा पड़ोसी मुल्क है । बड़ा बमबाज । रोज हमारे यहां बम फोड़ जाता है । उसको बोलिये कि शरीफों के मुहल्ले में ऐसी हरकत न किया करे । एटिकेट्स देखिये । दुश्मन मुल्क को दुश्मन तक न बोलेंगे और नाम भी ससुरे का जबान पर नहीं लायेंगे, जैसे शुध्द भारतीय पतिव्रताएं अपने भरतार का नाम जबान पर नहीं लेतीं बिल्कुल वैसे । भारत सरकार की हैसियत उस लड़की के बाप की है जिसकी नाबालिग लड़की को दबंगों ने उसके ही घर में घुस कर रेप किया हो और वो बेचारा कानून की दुहाई देता बलात्कार की मेडिकल रिपोर्ट लिये थाने में घूम रहा है । भारत सरकार भी क्या करे । पं0 नेहरू के पद चिन्हों पर भी तो चलना है । वो कश्मीर मामला यूएनओ की चौकी में ले गये थे । ये मुंबई हमाले के साक्ष्य दुनिया भर को कूरियर करते फिर रहे हैं । 1947 से 2009 तक के बलात् दुराचार की मेडिकल रिपोर्ट लिये दुनिया भर में घूम रहे हैं । हालत ये है कि बौना बंग्लादेश तक हमको कुछ नहीं समझता । पता करिये कहीं अब्दुल कादिर खान साहब ने परमाणु बम का फार्मूला शेख हसीना को भी तो नहीं सप्लाई कर दिया था । म्यांमार तो बम फोड़ने की दहलीज पर पहुंच भी चुका है ।

अब देखिये पाक की सीनाजोरी । जुलाई में राष्ट्रपति जरदारी ने कबूला था कि आतंकवादी हमारे ही पैदा किये हुये सांप हैं । इन्हें हमने भारत के लिये पाला था लेकिन अब ये हमारे लिये ही मुसीबत बने हुये हैं । पिछले महीने पूर्व राष्ट्रपति जनरल मुशर्रफ ने फरमाया कि हर अमेरिकी मदद का इस्तेमाल हम भारत के खिलाफ करते हैं । अमेरिका द्वारा दी गयी पोतभेदी हार्पून मिसाईल का जमीनी संस्करण तैयार करके पाकिस्तान ने अमेरिकी कानून की धज्जियां उड़ा दी । अभी परमाणु विज्ञानी अब्दुल कादिर खान का एक पुराना प्रेमपत्र प्रकाश में आया जो कि उन्होंने 2003 में अपनी पत्नी को लिखा था । इस पत्र में उन्होंने कुबूला था कि पाकिस्तान के परमाण्ाु अभियान में सबसे बड़ा मददगार चीन है । पाकिस्तान ने अपना पहला परमाणु परीक्षण सन 1989 में चीन में किया था । बाद में पाकिस्तान सरकार (मरहूम प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो) और पाक सेना ने परमाणु तकनीकि को इरान, उत्तर कोरिया, लीबिया जैसे दूसरे शांतिपरस्त देशों को बेच दिया था । इतने बड़े बड़े खुलासे । इतने महान सच दुनिया के सामने उद्धाटित हुये बस कुछ ही दिनों में । दुनिया, खासकर अमेरिका इस महान सच की रोशनी से अभिभूत हो गया । सत्यवादी पाकिस्तान की पीठ थपथपाने के लिये खुश होकर अमेरिकी संसद ने अगले पांच साल तक प्रतिवर्ष डेढ़ अरब डॉलर की अमेरिकी मदद वाले कानून को हरी झंडी दिखा दी । इसके अलावा अमेरिकी संसद ने युध्द कोष विधेयक के तहत 40 करोड़ डॉलर की आर्थिक मदद को भी मंजूरी दे दी ।

पाकिस्तान ने अपना सत्य ज्यादा जोरदार तरीके से रखा इसलिये अरबों डॉलर की अमेरिकी मदद उसे दे दी गयी । भारत सरकार ने अपना सत्य मनमोहनी कांग्रेसी तरीके से रखा इसलिये हमे एनपीटी की नसीहत दे दी गयी । वैसी ही नसीहत जैसी कि बलात्कार की शिकार लड़की के बाप को थाने में दी जाती है । गलती से इस बाप के पास अपनी लाइसेंसी बंदूक है इसलिये थानेदार उस बंदूक को थाने में जमा कराने पर भी जोर दे रहा है । गोलियां तो न्यूक्लियर डील में जमा ही करवा ली गयीं थी (न्यूक्लियर रियेक्टरर्स को सैन्य और असैन्य में विभाजित करवा कर ।) देखते हैं बंदूक कब तक बची रहती है ।

शुक्रिया, शुक्रिया हुजूरेआला । इन पैसों से हम आपके दुश्मनों की भी खबर लेंगे और अपने दुश्मनों की भी । =><

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मुशर्रफ फरार (व्यंग्य/कार्टून)

Posted by K M Mishra on August 6, 2009

Racing_car_2अबे ओ ! कमनसीब, नासपीटे । रूक जा । इत्ती तेज गाड़ी भगा कर कहां ले जा रहा है ? क्या पाकिस्तान का बार्डर फोड़ कर इरान में जा कर टक्कर मारेगा ।=>

=>परेशान मत हो अब्दुल्ला, वो अपने भूतपूर्व राष्ट्रपति जनरल मुशर्रफ होगें । जब से सुप्रीम कोर्ट ने उनके ऊपर पाकिस्तान में इमरजेंसी लगाने और सुप्रीम कोर्ट के 60 जजों की बर्खास्तगी के मामले में नोटिस जारी किया है तब से वो ऐसे ही दुनिया भर में कार भगा रहे हैं । अब तो लगता है कि वो लंबे समय तक तड़ीपार रहेंगे ।
=>
इक रस्ता,
आहा, आहा ।
इक राही,
आहा, आहा ।
अब हूं चोर,
पहले था सिपाही,
आहा, आहा ।

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ज़रा आंख में भर लो पानी (विजय दिवस पर विशेष) (व्यंग्य/कार्टून)

Posted by K M Mishra on July 27, 2009

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ज़रा आंख में भर लो पानी (विजय दिवस पर विशेष)

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मेरे दरवाजे़ पर इंटरपोल पुलिस (व्यंग्य/कार्टून)

Posted by K M Mishra on July 21, 2009

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मेरे दरवाजे़ पर इंटरपोल पुलिस

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सत्यवादी जरदारी (व्यंग्य/कार्टून)

Posted by K M Mishra on July 10, 2009

=> ये नासपीटे दोजख के कीड़े, इनको हमने भारत को काटने के लिए पाला था, ये अब हमीं को काट खाने लगे हैं । अब इनका इलाज अमेरीकी गोलियां और बम हैं । मरो सालों ।

                

           

 पिछली रात पता नहीं कौन सी रूहानी मजबूरी पेश आई कि पाकिस्तान के राष्ट्रपति ने हमेशा कि तरह एक बोतल स्काच की जगह दो बोतल स्काच खाली कर दी । शायद उनको मरहूम बेगम बेनज़ीर की याद हद से ज्यादा सता रही थी जबकि इस्लामाबाद के राष्ट्रपति भवन में उनको अमेरिकी राष्ट्रपति वाली सारी सुविधायें मुहैया कराई गयी हैं । यानी कि वो जब चाहे बिल क्लिटंन की तरह सिगार भी पी सकते हैं और पिला भी सकते हैं और पाक सेना भी यही चाहती है कि राष्ट्रपति जरदारी सारी सुविधाओं को भोगें और उसी में मशगूल भी रहें लेकिन बेकायदे आजम जिन्ना साहब के उसूलों के खिलाफ हरगिज़ न जायें । बेकायदे आजम जिन्ना साहब ने ख्वाब देखा था एक इस्लामिक राष्ट्र का जहां फिजाओं में सिर्फ इस्लाम ही इस्लाम तारी हो यानी की सड़कों पर लाशें, एक दूसरे का खून बहाते शिया और सुन्नी, एक अदद मानवाधिकार के लिए रिरियाते भूखे-नंगे बच्चे और औरतें, अपने ही देशवासियों से जूझती पाक सेना ……. और पता नहीं क्या, क्या ।

 जरदारी साहब सवेरे उठे तो उनको रात ख्वाब में चीखती, चिल्लाती मरहूम बेगम बेनजीर की याद आयी । बेनजीर चीख चीख कर उनको आदेश दे रही थीं कि मेरा हत्यारों को कब सजा दोगे । जरदारी साहब बेनजीर की चीख से अब भी उतना ही डरते हैं जितना कि पहले डरा करते थे । सवेरे उठे तो सिर भारी भारी हो रहा था । किसी तरह उठ कर गुसलखाने में जाकर फारिग़ हुए । सवेरे की नमाज़ अदा की और सिर झटकते हुऐ, आहिस्ता आहिस्ता चल कर अपने दीवान-खाने में पहुंचे और सोफे पर ढ़ेर हो गये ।

 तभी पता नहीं किस कोने से एक पत्रकार नाम का प्राणी निकल कर उनके सामने आ गया । जरदारी साहब ने आंखे मिचमिचा कर उसको देखने की कोशिश की । हाथ में कागज और कलम देखी तो समझ गये कि ये कम्बख्त अखबारनवीस की कौम से है । सवेरा हुआ नहीं कि मुंह उठाये चले आये । पूछा, क्या चाहते हो ।

 घिसे हुए पत्रकार ने देश के अंदरूनी हालात पर सवाल दाग दिया ।

 रात की स्काच अभी तक सिर पर दुगुन में तीन ताल बजा रही थी, ऊपर में मरहूम बेगम बेनजीर की भटकती आत्मा की चीखें । जरदारी साहब का ऊपरी माला कुछ देर के लिए सिफर हो गया । उस वक्त तक कामचोर सलाहकार भी सो कर नहीं उठे थे जो रात में हमप्याला बने आगे पीछे घूम रहे थे । राष्ट्रपति को कोई कूटनीतिक जवाब नहीं सूझा और सचाई ज़बान पर आ गयी । ये सब साले आतंकी, हमारे ही पैदा किये हुए हैं । इन सांपों को कल तक हमने इस लिए दूध पिलाया था कि ये जा कर भारत को डसेंगे । दुनिया भर में इस्लाम का नारा बुलंद करेंगे । ये दोजख के कीड़े, हरामी हमीं को काटने लगे । हमारी फौज फिनिट का डिब्बा लेकर इनको साफ करने में लगी है । कीड़े पड़ेंगे, कीड़े इन नासपीटों को, जिन्होंने मेरी बेगम को मुझसे जुदा कर दिया । दिल का दर्द ज़बान पर तो आया ही आया ही आंखों से भी छलकने लगा ।

 राष्ट्रपति की आंखे नम देख कर वो अखबारनवीस वहां से पोलो ले लिया । लेकिन देरी से कमरे में घुसने वाले राष्ट्रपति के सलाहकार ने जब राष्ट्रपति के मुंह से ये सचाई भरा बयान सुना तो सिर पीट लिया और सोचने लगा कि अब जनरल को इसका क्या मतलब समझायेंगे, क्योंकि कल तक तो भारत से भी कूटनीतिक दबाव पड़ना शुरू हो जायेगा ।

 

 

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