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जग बौराना : लज्जा नहीं आयी ।
Posted by K M Mishra on October 21, 2010
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हम संतन से का मतलब !
Posted by K M Mishra on October 2, 2010
लेखक – नरेश मिश्र
पांच दस नम्बरी, महापापी थे । अपराध करने से जी अघा गया । पुलिस के डंडे ने पीठ से साक्षात्कार किया, बुढ़ापा दस्तक देने लगा तो पांचों पापी गेरूआ वस्त्र पहन कर संत बन गये । तीर्थयात्रा को निकले ये संत एक गांव से गुजर रहे थे तो गांववालों की आवाज सुन कर भीड़ के नजदीक चले गये । एक झाड़ी के पास गांववाले साही को लाठियों से पीट रहे थे । साही के बदन पर कांटे होते हैं । लाठियां कांटे पर चटक रही थीं लेकिन साही का बाल बांका नहीं हो रहा था । उन संतों में जो महापापी था, उसने गांव वालों की ओर देखकर कहा – साही मरै मूड़ के मारे, हम संतन से का मतलब (साही सिर पर चोट करने से मर जाती है लेकिन हम संतों को इस बात से क्या लेना देना) । गांववालों ने संत के उपदेश का पालन करते हुये साही के सिर पर लाठियां बरसाईं, साही टें हो गयी ।
राम जन्मभूमि-बाबरी ढांचा विवाद का फैसला आने से पहले और बाद में हमने ऐसे ही मीडिया माहिर संतों के दर्शन किये । प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रिानिक मीडिया में इनदिनों ऐसे ही संतों की भरमार है जो जमालो की तरह आग लगा कर दूर से तमाशा देखते हैं । अखबार का सर्कुलेशन बढ़ना चाहिये, चैनल की टीआरपी रैंकिंग बढ़नी चाहिये । मुल्क का क्या होगा – इससे मीडिया को कुछ लेना देना नहीं । बर मरै चाहे कन्या, हमे दक्षिणा से काम ।
माननीय इलाहाबाद की लखनऊ खंडपीठ का बाबरी विवाद पर फैसला आने की खबर मिलते ही मीडिया की बांछें खिल गयीं । बिल्ली के भाग से छींका टूटा । ऐसा सुनहरा मौका बार-बार नहीं आता । प्रयागराज में कुंभ मेला बारह साल बाद जुड़ता है ।
मीडिया मुगलों को एहसास हुआ कि बेहद संगीन मामला है, मुल्क के आसमान पर संकट के बादल गहरा रहे हैं । बादल फटते हैं तो कयामत आती है । आसमान ही फट पड़ा तो क्या होगा । इस मुल्क के लोग तो जाहिल, गंवार और बर्बर हैं । धर्मनिरपेक्षता खतरे में पड़ गयी है । इस मौके पर लोकतंत्र के चौथे खंभे को टट्टर की आड़ से ऐसा तीर चलाना चाहिये कि सांप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे ।
सेकुलर मीडिया ने जंगल में रोने वाले सियारों को शर्मिंदा कर दिया और वे एक स्वर में हुआ हुआ करले लगे । इस सियार रोदन प्रतियोगिता का चैम्पियन कौन था, निशाने पर कौन साम्प्रदायिक तत्व थे, इसका फैसला हम पाठकों पर छोड़ देते हैं ।
बहरहाल कुछ नमूने तो पेश करने ही पडेंगे । टाइम्स नाऊ चैनल के अर्णव गोस्वामी के चैनल में भाजपा नेता और पेशे से माननीय सुप्रीम कोर्ट के वकील रविशंकर प्रसाद तशरीफ लाये । गोस्वामी ने उन्हें देख कर कमर के नीचे चोट करने का मन बनाया । ऐसे मौकों पर खास तौर से अंग्रेजी सेकुलर मीडिया के निशाने पर भाजपा का होना लाजिमी है । गोस्वामी ने रविशंकर से पूछा – फैसला आने पर भाजपा का अगला कदम क्या होगा ?
रविशंकर ने छूटते ही सवाल किया – आपने मुझे बतौर वकील परिचर्चा में बुलाया है । अगर आप चाहते हैं कि मैं भाजपा नेता के रूप में जवाब दूं, तो मुझे कुछ नहीं कहना है । आप मुझे गलत रास्ते पर जाने के लिये उकसा रहे हैं ।
गोस्वामी ने होशियारी से अपना बचाव करते हुये कहा – मेरा यह मकसद नहीं था । रामजन्मभूमि के लिये रथयात्रा भाजपा नेता अडवाणी ने की थी । बाकी सारे पैनलिस्ट मुस्कुरा रहे थे । उस वक्त सारे सेकुलर पाखंडियों को लग रहा था कि अदालत का फैसला बाबरी मस्जिद के पक्ष में आयेगा इसलिये लगे हाथ भाजपा, आर. एस. एस., विश्व हिंदू परिषद को लपटने में कोई हर्ज नहीं है । इसके एवज में धर्मनिरपेक्षता का गोल्डमेडल हासिल होगा । लेकिन रविशंकर, अर्णव गोस्वामी से ज्यादा तेजतर्रार निकले । उन्होंने कहा – मुकद्दमें का फैसला माननीय सुप्रीम कोर्ट से हो जाने दीजिये । इस लम्बी बहस का जवाब थोड़े में नहीं दिया जा सकता है ।
नमूना नंबर दो । जी न्यूज के महान बुध्दिजीवी पत्रकार पुण्य प्रसून बाजपेई ने डाक्टर मुरली मनोहर जोशी से पूछा – अदालत का फैसला आने के बाद क्या होगा ।
जोशी जी ने कहा – फैसला आयेगा तब देखा जायेगा आप अभी से अफवाह और सनसनी क्यों फैला रहे हैं ।
फैसला आया तो सारे सेकुलर पाखंडियों के कलेजे पर सांप लोट गया । आगे का कीचड़ उछालू प्लान मुलतवी करना पड़ा । टी आर पी और धंधे का भी बड़ा नुकसान हुआ । अदालत ने मान लिया था कि रामजन्मभूमि की पहचान उसी जगह के रूप में की जाती है जहां बाबरी ढांचा खड़ा था । उस जगह से मूर्तियां हटायीं नहीं जा सकती हैं ।
सेकुलर मीडिया को देख कर खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे की कहावत याद आती है । देश की हिंदू-मुस्लिम जनता ने बड़े धीरज और शांति से फैसला सुना । उसने देश के सेकुलर पाखंडियों को आईना दिखा दिया । जाहिर हो गया कि अगर सेकुलर मीडिया और धर्मनिरपेक्ष पाखंडी नेता खामोश बैठे रहते तो भी देश का जनमानस इतना समझदार है कि वह अदालत के फैसले पर भड़क कर सड़कों पर नहीं आता । देश के आम लोग मीडिया और सेकुलर पाखंडी नेताओं से ज्यादा समझदार हैं ।
एक टिटिहरी आसमान की तरफ पंजे उठा कर पीठ के बल लेटी थी । उसे भरोसा था कि अगर आसमान गिरेगा तो वह उसे अपने पंजे पर रोक लेगी । टिटिहरी की गलतफहमी उसे मुबारक । ज्यादा क्या कहें, सिर्फ यही अर्ज करनी है कि इन पांखडी लीडरों और मीडिया माहिरों का नकाब हटा कर उनका असली चेहरा देखने की जहमत उठायें । ये वोटबैंक और पैसे के लिये कुछ भी करने को उधार खाये बैठे हैं ।
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क्या आप बोर हो रहे हैं ?
Posted by K M Mishra on August 7, 2010
मेरा अच्छे से अच्छा मित्र भी दो मिनट बाद दरवाजे की तरफ देखने लगता है जब मैं उसको अपनी ताजी व्यंग्य रचना सुनाने बैठता हूँ या फिर वह मेज के नीचे से अखबार निकाल कर पढ़ने लगेगा या फिर पास बैठे भाई से उसकी पढ़ाई के बारे में पूछने लगेगा । मैं उसका ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करूंगा तो एक मिनट बाद कंबख्त को जंभाईयाँ आने लगेंगी । क्या कारण हो सकता है । दो कारण हो सकते हैं । पहला – या तो मैं इतना उच्च, उत्कृष्ट, क्लिष्ट और गंभीर साहित्य का सृजन करता हँ, मतलब कि इतना घटिया लिखता हँ कि सामने वाला बोर हो जाता है या फिर सामने वाले का साहित्य, कला, संगीत से दूर दूर तक कोई नाता ही नहीं है । इस वजह से वह वाकई में मेरी व्यंग्य रचनाओं को नहीं समझ पाया है जो कि गलती से अच्छी लिख दी गई हैं । समाज का कितना ह्रास हो गया है । लोग साहित्य से दूर हो रहे हैं । मैं साहित्य का सन्नाटा तोड़ने के लियेएक बढ़िया व्यंग्य लिखता हूँ और सुनने वाले की जंभाईयों से जितना सन्नाटा टूट सकता है टूट जाता है ।
जब से सभ्यता का विकास हुआ है आदमी ने बोरियत का अनुभव किया है । बंदर और चिंपाजी बोर होते हैं यह मुझको नहीं मालूम । मैं उनकी भाषा नहीं समझता । फिर वह केबल टी.वी. भी तो नहीं देखते हैं । पुराने समय में जब राजा दरबार, रानियों और नाच गानों से ऊब जाता था तो वह जंग लड़ने चला जाता था । जब जंग से ऊब जाता था तो वापस आकर रानियों और नाच गानों में व्यस्त हो जाता था ।
खैर, बड़ा ही महत्वपूर्ण प्रश्न है कि इंसान बोर क्यों होता है ? क्या कारण है ? क्या निदान है ? कम से कम अगर कोई ऐटीबोरियत गोली बन जाये तो यह बहुत बड़ा उपकार होगा साहित्य और साहित्यकारों पर । कोई सुनने वाला मिलता ही नहीं । कारण मनोवैज्ञानिक हैं और इसके कई मनोवैज्ञानिक कारण हो सकते हैं । एक उदाहरण देता हूं जो कि आपके साथ भी घटता है । मैं क्लास में बैठा फिजिक्स का लेक्चर सुन रहा हँ पर ध्यान पीरियड बाद होने वाले क्रिकेट मैच पर है । ‘विमल नालायक वाईड बाल बहुत फेंकता है । इसको ओवर दिया तो हरवाये बिना नहीं मानेगा ।‘ मन घूरपुर तन सैदाबाद । अब चाहे दुर्रानी सर हलक फाड़ कर बतायें कि इस्केप वेलासिटी के लिये 11.2 मी/से की रफ्तार जरूरी होती है पर मैं मुँह फाड़ कर जम्हाई लूंगा और सोचूँगा कि राधेश्याम की गेंद में वह रफ्तार नहीं जो इस्केप वेलास्टी में है । तो पहला कारण यह है कि जो घटना आपके सामने घट रही है हमारा ध्यान उसमें न लग कर कहीं ओर लगा हुआ है । किसी मजबूरीवश या बंधनवश हम वहाँ विराजे हुये हैं । मजबूरी है जो इस्केप वेलास्टी झेल रहे हैं और पलायन करने के लिये वेग नहीं जुटा पा रहे हैं । इस लिये जंभाईयाँ आ रही हैं ।
दूसरा कारण और दूसरा उदाहरण । अगला लेक्चर है केमिस्ट्री का । केमिस्ट्री में पिछली बार नंबर पता नहीं कैसे अच्छे आ गये थे । या तो मैं पढ़ कर आया था या उपाध्याय । क्योंकि दोनो ने एक दूसरे की कॉपी टीपी थी । इसलिये मैं केमिस्ट्री का लेक्चर अटेंड करने लगा हँ । पर चतुर्वेदी सर इतना धीरे बोलते हैं कि कुछ पल्ले नहीं पड़ता है । क्या पढ़ा रहे हैं । क्या बोर्ड पर लिख रहे हैं खुद एक पहेली है । मैं बीस मिनट तक दिमाग पर जोर डाले उन्हें वाच कर रहा हँ पर पच्चीसवें मिनट में उदासी का हमला हो जाता है और मैं जंभाईयां लेने लगता हूँ । अर्थात सामने वाली घटना इतनी ढ़ीली है कि वह ध्यानाकर्षक नहीं है और उस पर दिमाग केंद्रित करना एक दिमागी कसरत है जिससे दिमाग थक जाता है और निद्रा की शुरूआति स्थिति का प्रादुर्भाव होता है । झपकी आने लगती है । बोरियत का अनुभव ।
उदाहरण नंबर तीन । मैं अपने तीन मित्रों क्ष,त्र,ज्ञ के साथ बैठा हुआ हूँ । हम चारों अभिन्न मित्र हैं । क्ष,त्र,ज्ञ दर्शनशास्त्र के प्रेमी हैं । अभी भी नालायक दर्शनशास्त्र के किसी सिध्दांत पर भेजा भिड़ाये हुये हैं । पर मेरी यह मुसीबत है कि फिलासफी के दर्शन मात्र से ही मुझे पसीना आता है । पर मैं क्ष,त्र,ज्ञ के प्रेम की वजह से उठ कर जा भी नहीं सकता हूँ । बैठा हूँ और दर्शनशास्त्र के पत्थर सर पर पीट रहा हँ और थोड़ी देर में बोरियत का शिकार हो जाऊंगा अर्थात सामने धटित होने वाली घटना ऐसी है जिसमें आपकी कोई दिलचस्पी नहीं है पर आप उठ कर जा भी नहीं सकते हैं फिर आप क्या कर सकते हैं । कुछ नहीं, आप एक छोटी सी नींद ले लीजिये । खर्र-खर्र ।
कभी-कभी बोरियत एक ही घटना के या क्रिया के बार बार दोहराव के कारण हो जाती है जिसकी वजह वह क्रिया उतनी चित्ताकर्षक नहीं रहती है जितनी की पहली बार थी । एकसी समस्या या एक ही फिल्म को 3 या 4 बार देखने पर या एक ही काम रोज रोज करने पर बोरियत पैदा होती है ।
बोरियत आदमी को अच्छी चीजों से भी हो जाती है । आदमी हर रोज रसगुल्ला खाये तो हफ्ते भर बाद वह रसगुल्ला देख कर भागेगा । केबल टी.वी. के 60-70 चैनल बदलते बदलते बोरियत होने लगती है । बोरियत खाली बैठने से भी होती है । इस प्रकार की बोरियत रिटायर्ड आदमियों को बहुत होती है । अगर उनके पास करने को कोई काम नही होता है या उन्होंने अपने आप को कहीं बिज़ी नहीं रखा तो वे बोरियत का शिकार हो जाते हैं ।
इस प्रकार बोरियत कई प्रकार की होती है । लैक ऑफ कन्सन्ट्रेशन, घटनाओं का दोहराव, खाली बैठना, किसी ऐसी क्रिया में भाग लेना जिसमें आपकी रूचि न हो और अरूचि के कारण दिमाग थकने लगे । या सामने वाली क्रिया इतनी ढ़ीली और बोझिल है कि उसको झेलना एक सजा हो ।
बोरियत से बचने के तरीके क्या हो सकते हैं ?
पहला – कन्सन्ट्रेट हो कर घटनाओं को वाच कीजिये । अधूरे मन से देखने पर बोरियत होगी ।
दूसरा – घटनाओं को और चीजों को इन्जॉय करना सीखिये ।
तीसरा – अपना दायरा बढ़ाइये । उन चीजों में भी रूचि लीजिये जिनसे अभी तक आप दूर थे ।
चौथा – अपने आप को अधिक्तर व्यस्त रखिये और उन क्रियायों में ज्यादा वक्त दीजिये जिन्हें आप पसंद करते हो । जैसे किताबें, कुकिंग, संगीत वगैरह ।
पांच – इसके बाद भी अगर कुछ परिस्थितियाँ या लोग ऐसे हैं जो कि बोरियत के पर्यायवाची है तो तुरन्त चप्पल पहनिये और फूट लीजिये ।
ईsssओssssहाssss (जंभाई) । बहुत बोर किया । अब खत्म करना चाहिये ।
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मैडम का कुत्ता । व्यंग/कार्टून
Posted by K M Mishra on July 26, 2010
मैडम ने एक बड़ा ही धाकड़, खुंखार, कटखना, नया कुत्ता खरीदा है मगर नाम को लेकर परेशान हैं । टाईगर, शेरू, पैंथर जैसे नाम वो नहीं रखना चाहती हैं । उनको नये जमाने का खुंखार नाम चाहिये । मैं तो कहता हूं इसकी स्वामिभक्ति को देखते हुये सी.बी.आई. नाम बिल्कुल ठीक रहेगा ।=V
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रोजगार के नये अवसर : ज्योतिषी बनिये
Posted by K M Mishra on July 22, 2010
यह व्यंग्य लेख एक दूसरी साईट पर ट्रान्सफर कर दिया गया है. लेख पढने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें.
रोजगार के नये अवसर : ज्योतिषी बनिये
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रोज़गार के नये अवसर – 1
Posted by K M Mishra on July 20, 2010
यह व्यंग्य लेख एक दूसरी साईट पर ट्रान्सफर कर दिया गया है. लेख पढने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें.
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