क्या आप बोर हो रहे हैं ?
Posted by K M Mishra on August 7, 2010
मेरा अच्छे से अच्छा मित्र भी दो मिनट बाद दरवाजे की तरफ देखने लगता है जब मैं उसको अपनी ताजी व्यंग्य रचना सुनाने बैठता हूँ या फिर वह मेज के नीचे से अखबार निकाल कर पढ़ने लगेगा या फिर पास बैठे भाई से उसकी पढ़ाई के बारे में पूछने लगेगा । मैं उसका ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करूंगा तो एक मिनट बाद कंबख्त को जंभाईयाँ आने लगेंगी । क्या कारण हो सकता है । दो कारण हो सकते हैं । पहला – या तो मैं इतना उच्च, उत्कृष्ट, क्लिष्ट और गंभीर साहित्य का सृजन करता हँ, मतलब कि इतना घटिया लिखता हँ कि सामने वाला बोर हो जाता है या फिर सामने वाले का साहित्य, कला, संगीत से दूर दूर तक कोई नाता ही नहीं है । इस वजह से वह वाकई में मेरी व्यंग्य रचनाओं को नहीं समझ पाया है जो कि गलती से अच्छी लिख दी गई हैं । समाज का कितना ह्रास हो गया है । लोग साहित्य से दूर हो रहे हैं । मैं साहित्य का सन्नाटा तोड़ने के लियेएक बढ़िया व्यंग्य लिखता हूँ और सुनने वाले की जंभाईयों से जितना सन्नाटा टूट सकता है टूट जाता है ।
जब से सभ्यता का विकास हुआ है आदमी ने बोरियत का अनुभव किया है । बंदर और चिंपाजी बोर होते हैं यह मुझको नहीं मालूम । मैं उनकी भाषा नहीं समझता । फिर वह केबल टी.वी. भी तो नहीं देखते हैं । पुराने समय में जब राजा दरबार, रानियों और नाच गानों से ऊब जाता था तो वह जंग लड़ने चला जाता था । जब जंग से ऊब जाता था तो वापस आकर रानियों और नाच गानों में व्यस्त हो जाता था ।
खैर, बड़ा ही महत्वपूर्ण प्रश्न है कि इंसान बोर क्यों होता है ? क्या कारण है ? क्या निदान है ? कम से कम अगर कोई ऐटीबोरियत गोली बन जाये तो यह बहुत बड़ा उपकार होगा साहित्य और साहित्यकारों पर । कोई सुनने वाला मिलता ही नहीं । कारण मनोवैज्ञानिक हैं और इसके कई मनोवैज्ञानिक कारण हो सकते हैं । एक उदाहरण देता हूं जो कि आपके साथ भी घटता है । मैं क्लास में बैठा फिजिक्स का लेक्चर सुन रहा हँ पर ध्यान पीरियड बाद होने वाले क्रिकेट मैच पर है । ‘विमल नालायक वाईड बाल बहुत फेंकता है । इसको ओवर दिया तो हरवाये बिना नहीं मानेगा ।‘ मन घूरपुर तन सैदाबाद । अब चाहे दुर्रानी सर हलक फाड़ कर बतायें कि इस्केप वेलासिटी के लिये 11.2 मी/से की रफ्तार जरूरी होती है पर मैं मुँह फाड़ कर जम्हाई लूंगा और सोचूँगा कि राधेश्याम की गेंद में वह रफ्तार नहीं जो इस्केप वेलास्टी में है । तो पहला कारण यह है कि जो घटना आपके सामने घट रही है हमारा ध्यान उसमें न लग कर कहीं ओर लगा हुआ है । किसी मजबूरीवश या बंधनवश हम वहाँ विराजे हुये हैं । मजबूरी है जो इस्केप वेलास्टी झेल रहे हैं और पलायन करने के लिये वेग नहीं जुटा पा रहे हैं । इस लिये जंभाईयाँ आ रही हैं ।
दूसरा कारण और दूसरा उदाहरण । अगला लेक्चर है केमिस्ट्री का । केमिस्ट्री में पिछली बार नंबर पता नहीं कैसे अच्छे आ गये थे । या तो मैं पढ़ कर आया था या उपाध्याय । क्योंकि दोनो ने एक दूसरे की कॉपी टीपी थी । इसलिये मैं केमिस्ट्री का लेक्चर अटेंड करने लगा हँ । पर चतुर्वेदी सर इतना धीरे बोलते हैं कि कुछ पल्ले नहीं पड़ता है । क्या पढ़ा रहे हैं । क्या बोर्ड पर लिख रहे हैं खुद एक पहेली है । मैं बीस मिनट तक दिमाग पर जोर डाले उन्हें वाच कर रहा हँ पर पच्चीसवें मिनट में उदासी का हमला हो जाता है और मैं जंभाईयां लेने लगता हूँ । अर्थात सामने वाली घटना इतनी ढ़ीली है कि वह ध्यानाकर्षक नहीं है और उस पर दिमाग केंद्रित करना एक दिमागी कसरत है जिससे दिमाग थक जाता है और निद्रा की शुरूआति स्थिति का प्रादुर्भाव होता है । झपकी आने लगती है । बोरियत का अनुभव ।
उदाहरण नंबर तीन । मैं अपने तीन मित्रों क्ष,त्र,ज्ञ के साथ बैठा हुआ हूँ । हम चारों अभिन्न मित्र हैं । क्ष,त्र,ज्ञ दर्शनशास्त्र के प्रेमी हैं । अभी भी नालायक दर्शनशास्त्र के किसी सिध्दांत पर भेजा भिड़ाये हुये हैं । पर मेरी यह मुसीबत है कि फिलासफी के दर्शन मात्र से ही मुझे पसीना आता है । पर मैं क्ष,त्र,ज्ञ के प्रेम की वजह से उठ कर जा भी नहीं सकता हूँ । बैठा हूँ और दर्शनशास्त्र के पत्थर सर पर पीट रहा हँ और थोड़ी देर में बोरियत का शिकार हो जाऊंगा अर्थात सामने धटित होने वाली घटना ऐसी है जिसमें आपकी कोई दिलचस्पी नहीं है पर आप उठ कर जा भी नहीं सकते हैं फिर आप क्या कर सकते हैं । कुछ नहीं, आप एक छोटी सी नींद ले लीजिये । खर्र-खर्र ।
कभी-कभी बोरियत एक ही घटना के या क्रिया के बार बार दोहराव के कारण हो जाती है जिसकी वजह वह क्रिया उतनी चित्ताकर्षक नहीं रहती है जितनी की पहली बार थी । एकसी समस्या या एक ही फिल्म को 3 या 4 बार देखने पर या एक ही काम रोज रोज करने पर बोरियत पैदा होती है ।
बोरियत आदमी को अच्छी चीजों से भी हो जाती है । आदमी हर रोज रसगुल्ला खाये तो हफ्ते भर बाद वह रसगुल्ला देख कर भागेगा । केबल टी.वी. के 60-70 चैनल बदलते बदलते बोरियत होने लगती है । बोरियत खाली बैठने से भी होती है । इस प्रकार की बोरियत रिटायर्ड आदमियों को बहुत होती है । अगर उनके पास करने को कोई काम नही होता है या उन्होंने अपने आप को कहीं बिज़ी नहीं रखा तो वे बोरियत का शिकार हो जाते हैं ।
इस प्रकार बोरियत कई प्रकार की होती है । लैक ऑफ कन्सन्ट्रेशन, घटनाओं का दोहराव, खाली बैठना, किसी ऐसी क्रिया में भाग लेना जिसमें आपकी रूचि न हो और अरूचि के कारण दिमाग थकने लगे । या सामने वाली क्रिया इतनी ढ़ीली और बोझिल है कि उसको झेलना एक सजा हो ।
बोरियत से बचने के तरीके क्या हो सकते हैं ?
पहला – कन्सन्ट्रेट हो कर घटनाओं को वाच कीजिये । अधूरे मन से देखने पर बोरियत होगी ।
दूसरा – घटनाओं को और चीजों को इन्जॉय करना सीखिये ।
तीसरा – अपना दायरा बढ़ाइये । उन चीजों में भी रूचि लीजिये जिनसे अभी तक आप दूर थे ।
चौथा – अपने आप को अधिक्तर व्यस्त रखिये और उन क्रियायों में ज्यादा वक्त दीजिये जिन्हें आप पसंद करते हो । जैसे किताबें, कुकिंग, संगीत वगैरह ।
पांच – इसके बाद भी अगर कुछ परिस्थितियाँ या लोग ऐसे हैं जो कि बोरियत के पर्यायवाची है तो तुरन्त चप्पल पहनिये और फूट लीजिये ।
ईsssओssssहाssss (जंभाई) । बहुत बोर किया । अब खत्म करना चाहिये ।
This entry was posted on August 7, 2010 at 7:45 AM and is filed under हिन्दी हास्य व्यंग्य.
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प्रवीण पाण्डेय said
बोरियत से बचने के सटीक उपाय
सम्वेदना के स्वर said
ईsssओssssहाssss (जंभाई) । बहुत बोर किया ।
आम तौर पर ब्लॉग जगत का फैशन है कि पोस्ट से कोई लाईन कॉपी पेस्ट की और उसके नीचे अद्भुत, सुंदर प्रस्तुति वगैरह जैसे फॉर्मेलिटि वाचक शब्द डाल कर टिप्पणि ऋण का भुगतान किया. बस इसी चक्कर में आपकी ऊपर वाली लाइन चिपक गई. और आपके व्यंग्य की पकड़ ऐसी है कि वह लाईन भी कम्बख़्त च्यूईंग गम की तरह चिपकी है.कि हटाए ना हटे और मिटाए न बने.तो जाने देता हूँ. आपने तो बहुत झेला होगा ये भी झेलिए…
हम तो आनंद के सागर में गोते लगा रहे हैं!!
arvind mishra said
बोरियत भरी पोस्ट हा हा हा
ıslak kek tarifi said
wery good
ANAND TRIPATHI said
मिश्रा जी काफी दिनो से कोइ नई पोस्ट नही ?
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