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सभी प्रदूषणों का बाप । (व्यंग्य/कार्टून)

Posted by K M Mishra on June 8, 2010

पर्यावरण दिवस के अवसर पर ।

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मित्रों, चारों तरफ बढ़ता हुआ प्रदूषण एक मुसीबत है । चाहे वह वायु प्रदूषण हो, जल प्रदूषण हो, या फिर ध्वनि प्रदूषण । मृदा प्रदूषण को भी मत भूलियेगा क्योंकि ये भी एक प्रकार का प्रदूषण होता है । हालांकि इन सब से बड़ा और सभी प्रदूषणों की जड़, जो सबसे बड़ा प्रदूषण है उस पर किसी की निगाह अभी तक नहीं गई है । जब निगाह ही नहीं गई है तो उसको प्रदूषण भी नहीं मानेंगे । फिर उस प्रदूषण को हटाना, खत्म करना किसी के बस की बात भी नहीं है । इस सबसे बड़े प्रदूषण को तो वही हटा सकता है जिसने इस प्रदूषण को फैलाया है । आप लोग सोच रहे होगे कि ये सबसे बड़ा प्रदूषण क्या बला है जिस पर अब तक हमारी नजर ही नहीं पड़ी । मित्रों, वह सबसे प्रदूषण, सभी प्रदूषणों का बाप, और सारे प्रदूषण जिसकी उंगली पकड़ कर चलना सीखते हैं, वह है इंसान, मानव, ह्ययूमन बींग, सबसे विवेकशील प्राणी, सभी प्रकार के प्रदूषणों की जड़ यानि की हम । हम से मतलब आप लोग सिर्फ कृष्ण मोहन मत लगा लीजियेगा । क्योंकि अगर आप ये सोच रहे हैं कि कृष्ण मोहन को हटाने भर से सभी प्रदूषणों से निजात मिल जायेगी तो आप गलत सोच रहे हैं । क्योंकि ये बिचारा कृष्ण मोहन सिर्फ ध्वनि प्रदूषण और विचारों के प्रदूषण के सिवाये और दूसरे प्रदूषणों को नहीं फैलाता है । धूम्रपान ये करता नहीं कि हर तरफ कार्बन मोनोआक्साइड का फैलाव करे और पान भी ये नहीं खाता कि जहाँ देखो तहाँ ये चित्रकारी करता फिरे । ध्वनि प्रदूषण भी तब फैलाता है जब उसे आकाशवाणी में विनोद वार्ता के लिये बुलाया जाता है । इस लिये ये आदमी उतना प्रदूषण नहीं फैलाता जितना कि दूसरे आदमी फैलाते हैं । हम का मतलब है हम सभी, इस पृथ्वी नामक ग्रह पर निवास करने वाले साढ़े छ: अरब इंसान । प्रकृति के बनाये हुये सबसे विवेकशील प्राणी, जिसने अपने विवके से दूसरे जीव जंतुओं का तो जीना हराम कर ही दिया है और प्रकृति की भी नाक में भी दम कर रखा है । कहाँ कहाँ नहीं हम ने गंदगी फैलाई है । चाहे वह माउंट ऐवरेस्ट हो या फिर प्रशांत महासागर । चांद पर भी हो आये हैं तो जाहिर है वहाँ भी कुछ न कुछ गंदगी फैलाई होगी । अगर गंदगी नहीं फैलायेंगे तो फिर इंसान कैसे । जिसको कहते हैं पर्यावरण उसका हमने सत्यानाश बल भर किया है । चारों तरफ एक महान प्रदूषण फैला हुआ है (यानि कि इंसान) और इसके द्वारा फैलायी हुयी गंदगी । धरती माता अपने इस लाल की करतूत देख कर सोचती होंगी कि तेरी वजह से आज न जाने कितने जीव-जन्तु, पक्षी और वनस्पतियाँ या तो खत्म हो चुके हैं या फिर लुप्त होने के कगार पर हैं । तू इस कोख से जन्म न लेता तो ही ठीक था । ये दुनिया तेरे बिना ज्यादा सुंदर और शांत होती ।


तो मित्रों ये तो बात हो गई जितने भी प्रकार के प्रदूषण होते हैं उन सबके पिताजी की, यानि की इंसान की । अब आईये उन प्रदूषणों पर निगाह दौड़ाते हैं जो कि इसके द्वारा पैदा किये गये हैं । सबसे पहले लेते हैं वायु प्रदूषण को । वायु प्रदूषण वह प्रदूषण होता है जो कि वायु में फैलाया जाता है । जिसकी वजह से वायुमंडल दूषित होता है । हाँ हाँ भाईया, पेट में वायु विकार के कारण कुछ मानव गर्जना के साथ थोड़ी मात्रा में गैस भी बाहर निकालते हैं लकिन उतनी गैस से वायु प्रदूषण नहीं फैलता है । फिर वह ज़हरीली भी नहीं होती है। वायु प्रदूषण फैलता है बड़े पैमाने पर ज़हरीली गैसों के वायुमंडल में फैलने पर । जैसे कि बड़े बड़े कारखानों की चिमनियों से निकलने वाला काला धुआं वायु प्रदूषण फैलाता है । जनरेटरों और बढ़ती हुयी वाहनों की संख्या भी वायु प्रदूषण को फैलाती है । इस वायु प्रदूषण के कारण ओजोन परत का क्षरण होता है और ग्रीन हाउस इफेक्ट की भी समस्या उत्पन्न होती है । मेरी साईकिल से किसी प्रकार का वायु प्रदूषण नहीं फैलता और नहीं मैं धूम्रपान का शौकीन हँ इसलिये पर्यावरण रक्षा के लिये अगर आप कोई पुरस्कार मय लाख, दस लाख की राशि देना चाहते हों तो देर न करिये । मैं इंतजार में बैठा हुआ हूं ।

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अब बात करते हैं जल प्रदूषण की । जल ही जीवन है । एक दिन भी अगर बंबे में पानी न आये तो तिवारी जी के हैंडपंप पर पहले बाल्टी लगाने के लिये वो किच किच होती है कि कई बार दिल करता है कि आज पुलिस बुला ही ली जाये । एक बार तो मैं तिवारी जी के हैंड पंप पर शाम के वक्त लोटा बाल्टी लिये दिन भर की थकान उतारने के लिये नहा रहा था, क्योंकि 36 घंटे हो चुके थे नल से पानी टपके । अभी दो ही लोटा पानी सिर पर डाला था कि रोजी के पापा तमतमाते हुये आ पहुंचे । उन्होंने रौद्ररूप धारण कर के बताया कि कक्षा 7 में पढ़ने वाली उनकी बेटी रोज़ी अब युवा हो गई है और अब मैं अपने शरीर का प्रदर्शन आइंदा सार्वजनिक तरीके से इस हैंडपंप पर नहीं किया करूं क्योंकि इससे उनकी युवा हो रही बिटिया के मन पर बुरा असर पड़ेगा और ये मेरे शारीरिक स्वास्थ्य के लिये भी हितकर नहीं होगा । जल ही जीवन है और इसके कारण मेरा जीवन उस शाम संकट में पड़ा था ।


पानी हमारे लिये उतना ही जरूरी है जितनी की हवा । लेकिन हम अपने विवेक से दोनों का ही सत्यानाश करने पर तुले हुये हैं । औद्योगिक कारखानों के रसायनिक अवशिष्ट, विभिन्न कीटनाशकों का प्रयोग जैसे डी.डी.टी., आर्सेनिक लवण आदि, घरेलू कूड़ा करकट, खेतों में इस्तमाल किया गया नाइट्रेट उर्वरक जो कि बह कर कुओं या तलाबों में चला जाता है जिससे गंभीर बिमारियाँ होती है, नदी तट पर शवदाह, या अधजले शवों को नदी में प्रवाहित करना इन सबसे मीठे पानी के दोनों स्रोत प्रदूषित होते हैं । जमीन के नीचे भी और जमीन के ऊपर भी ।


आइये अब चर्चा करते है ध्वनि प्रदूषण के बारे में । ध्वनि प्रदूषण के अंतर्गत आता है विभिन्न वाहनों से पैदा होने वाला शोर, आतिशबाजी का शोर, चुनाव प्रचारों और धार्मिक प्रचारों का शोर, दशहरा होली के दिन बजने वाला कान फाडू संगीत या आज कल शादी ब्याह में चला डी.जे. का नया शौक । अभी कुछ ही दिन हुये मैं एक सज्जन की शादी में गया था । उनकी बारात एक छोटे से गेस्ट हाउस में समाहित थी । उस गेस्ट हाउस के ग्राउंड फ्लोर में बने एक मात्र हाल में खाने का, बारातियों के बैठने का और युवाओं के लिये डी.जे. का भी इंतजाम था । उस 30 बाई 60 फिट के हाल में उन बड़े बड़े स्पीकरों ने वो कहर ढाया कि आधे से अधिक बाराती तो बिना खाना खाये ही भाग खड़े हुये । मैं ठहरा पंडित आदमी । चार कचौड़ियों के लिये जान पर खेल गया । आखिर व्यौहारी के 51 रू. भी तो वसूलने थे । दूसरे दिन खबर मिली कि वो बेचारा दूल्हा जो कि दूल्हन के चक्कर में नहीं भाग सका, रात दो बजे उसे भी घबड़ाहट होने लगी थी । दूल्हे मियां दवा खाने के बाद ही 7 फेरे ले पाये थे ।


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ध्वनि प्रदूषण की वजह से हृदय की धड़न बढ़ना (हांलाकि दिल की धड़कन सुंदर लड़कियों के सामने आ जाने पर भी बढती है), रक्त संचार मे कमी, चिड़चिड़ापन, अत्यधिक मानसिक तनाव व स्थाई बहरापन आदि दिक्कते होती हैं ।


मृदा प्रदूषण अत्यधिक उर्वरकों का खेतों में प्रयोग करने के कारण और औद्यिक अवशिष्टों को भूमि पर बहाने के कारण होता है । इन रसायनों की वजह से खाद्यान्न, सब्जियाँ और फल इत्यादि जहरीले हो जाते हैं जिनकी वजह से हम सभी को तमाम पेट की और रक्त सम्बन्धी बीमारियाँ होती है और डाक्टरों की ऐश हो जाती है ।


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तो मित्रों कुल मिलाकर सारे प्रदूषणों की जड़ है इंसान । जाहिर है हम अपनी परेशानी खुद है । बढ़ती हुयी जनसंख्या, न सिर्फ पर्यावरण को प्रदूषित करती है बल्कि बेरोजगारी और अपराध को भी बढ़ावा देती है । देश की अर्थव्यवस्था और कानून व्यवस्था की ऐसी तैसी होती है सो अलग । आज हमारा देश विकासशील देश है तो इसके जिम्मेदार हम हैं क्योंकि हम आज भी अपनी आबादी पर नियंत्रण नहीं रख पा रहे हैं। जाहिर है ज्यादा आबादी यानि कि ज्यादा प्रदूषण । ज्यादा दिक्कतें । इसलिये आप लोगों से मेरा हाथ जोड़ कर सविनय निवेदन है कि कृपया करके आप लोग दो से ज्यादा शादी मत करिये । ज्यादा जरूरत पड़ जाये तो तीसरी शादी बहुत है । (दो पत्नियां तो दहेज में जलाने में ही खर्च हो जाती हैं) और बच्चों के मामले में आपसे कुछ नहीं बोलूंगा । कम से कम चार बच्चे तो चाहिये ही जनाजे को कंधा देने के लिये । है कि नहीं ।

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