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जग बौराना: लिव इन रिलेशन के सदके

Posted by K M Mishra on October 27, 2010

लेखक: श्री नरेश मिश्र

साधो, सुप्रीम कोर्ट में नारी शक्ति की बिजली चमकी । हमारी आंखें डर के मारे बन्द हो गयीं । गनीमत हुयी कि हम अंधे नहीं हुये । आंखों की रोशनी चली जाती तो हम बुढ़ापे में ठोकर खाते । हमें कौन सहारा देता । हमारी नारी बेचारी तो हमारा साथ छोड़कर अल्ला मियां को प्यारी हो गयी । वह सचमुच बेचारी थी । उसने हमारे जैसे बेपरवाह, गरीब, कलमकार के साथ लड़ते झगड़ते, रूठते मनाते जिन्दगी के पचास बरस गुजार दिये । पता नहीं किस पोंगा पण्डित ने उसके जेहन में यह जहर भर दिया था कि पति को फैशन के मुताबिक हर रोज बदला नहीं जा सकता है । पति का चीर एक बार पहना तो उसे मरने तक उतारने की मनाही है ।

साधो, हमारे मुल्क में करोड़ों ऐसी अन्धविश्वासी, गयी गुजरी, गलीज दिमाग औरतें हैं जो एक ही मर्द के साथ सारी जिंदगी गुजार देती हैं । लगता है इस मुल्क का यह प्रदूषण कभी दूर नहीं होगा ।

ये अनपढ़ नारियां कुछ नहीं जानतीं । इन्हें इक्कीसवीं सदी की बयार छू कर भी नहीं निकली, ये लिव इन रिलेशन से महरूम हैं । इन्होंने वह क्लब कभी नहीं ज्वाइन किया जिसमें वाइफ, हस्बेण्ड की अदला बदली होती है । नया मर्द, नयी औरत का जायका काबिले बयान नहीं । इस जायके को वही जानता है जिसने कभी इसका सुख उठाया हो ।

इक्कीसवीं सदी के माहौल में हजारों बरस पुरानी लीक पर चलना कौन सी समझदारी है । इस तरह मुल्क तरक्की की सीढ़ियों पर चढ़ कर विकास के शिखर पर कैसे पहुंचेगा ।

मामला काबिले फिक्र है इसीलिये एक सम्मानित महिला वकील ने यह सवाल सुप्रीमकोर्ट में उठाया है । मामला एक फैसले से जुड़ा है जिसमें न्यायमूर्ति ने एक रखैल के लिये ‘कीप’ शब्द का इस्तेमाल किया । महिला वकील ने पूछा है कि क्या कोई औरत किसी मर्द को रखैल रख सकती है ।

सवाल मौजूं, पेचीदा और दिलचस्प है । महिला वकील के सवाल में नाराजगी भरी आधुनिकता है लेकिन उन्होंने खुद को अतिआधुनिक होने से बचा लिया । वकील की दलील बेहद शातिर होती हैं । हम तो पुरातनपंथी, खण्डहरों में विचरने वाले जिंदा प्रेत माने जाते हैं लेकिन हमें भी मालूम है कि बहुत सी अतिआधुनिक महिलाएं मर्दों को रखैल रखती हैं । उन्हें अंग्रेजी में ‘जिगालो’ कहा जाता है । मुंबई, दिल्ली जैसे महानगरों में जिगालो पैसे पर अपनी सेवाएं देते हैं । थोड़ा कहा बहुत समझना, चिट्ठी को तार समझना । बात को अफसाना और घास को दाना बनाना वाजिब नहीं है । इशारों को अगर समझो, राज को राज रहने दो ।

साधो, वकील साहिबा को ‘कीप’ शब्द पर एतराज है । ‘कन्कोबाइन’ पर उन्हें नाराजगी है । रखैल लफ्ज पर उनका भड़कना लाजिमी है । जजों की लाचारी है कि उन्हें जजमेंट लिखने के लिये डिक्शनरी में दर्ज शब्द ही इस्तेमाल करने पड़ते हैं । इस मर्ज का क्या इलाज है । संसद में कानून पास कर डिक्शनरियों पर प्रतिबंध लगा देना चाहिये । कानून पास करने में देर हो तो आरडिनेन्स लागू कर देना चाहिये । सुप्रीम कोर्ट ये दोनो काम नहीं कर सकती । शिकायत संसद पर है तो गुस्सा सुप्रीम कोर्ट पर कैसे उतारा जा सकता है ।

सम्मानित वकीलसाहिबा को लिव इन रिलेशन पर कोई एतराज नहीं है । इस रिलेशन पर तो सुप्रीम कोर्ट पहले ही मोहर लगा चुकी है । इस रिलेशन का दायरा बताने का काम बाकी था । कोर्ट ने अपनी समझ से यह जिम्मेदारी निभा दी ।

मामला दक्षिण भारत की एक फिल्म अभिनेत्री खुश्बू से जुड़ा था । इस मामले पर फैसला देते हुये कोर्ट ने कहा था कि बालिग मर्द और औरत अपनी सहमति से साथ रह सकते हैं । फैसला लिखते वक्त एक माननीय न्यायधीश ने अपनी सारी हदें तोड़ दीं । उन्होंने लिखा कि भगवान श्री कृष्ण और भगवती राधा के बीच लिव इन रिलेशन था । यह मिसाल देने की कोर्ट को कोयी जरूरत नहीं थी । इस मिसाल के बिना भी कोर्ट का फैसला अधूरा न रहता लेकिन माननीय न्यायधीश को करोड़ों हिंदुओं की आस्था पर चोट करनी थी । वे अपना काम कर गये । उन्हें माननीया वकील साहिबा बेहिचक अति आधुनिकों की जमात में शामिल करेंगी । उन्होंने यह जजमेंट जरूर पढ़ा होगा, पढ़ा नहीं होगा तो सुना जरूर होगा । करोड़ों हिंदुओं के कलेजे पर घाव करने वाला यह जजमेंट आज भी जस का तस है । इसकी भाषा में सुधार करने पर किसी ने नहीं सोचा । इस मिसाल से बेजबान हिंदुओं के दिल पर क्या गुजरी होगी जिनका सवेरा श्री राधा के नामजप से होता है, जो जय श्रीराधे कह कर एक दूसरे का अभिवादन करते हैं ।

गरज ये कि हिंदू तो जन्म से ही साम्प्रदायिक होता है । सेकुलर होने के लिये उसे बहुत पढ़ाई करनी पड़ती है । जो जितना पढ़ा लिखा है उतना अधिक सेकुलर है । ऐसे ही पढ़े लिखों के बारे में जनाब अकबर इलाहाबादी ने फरमाया था –

हम ऐसी कुल किताबों को काबिले जब्ती समझते हैं ।
जिनको पढ़ कर लड़के बाप को खब्ती समझते हैं ।

बात निकलेगी तो बहुत दूर तक जायेगी । रखैल, कीप या कन्कूबाईन शब्द बदबूदार हैं लेकिन रखैल या कीप होना उससे ज्यादा अफसोसजनक है । यह समाज पुरूष प्रधान रहा था, रहा है, आगे क्या होगा राम जी जाने । चंद महिलाओं के अतिआधुनिक हो जाने से समाज की स्त्रियों में रातों रात कोई बदलाव नहीं आ सकता । मजबूरी में पैसे के बदले जिस्म बेचने वाली बेबस औरतों को सेक्सवर्कर का नाम देने से समाज की कालिख नहीं धुल सकती । कोई महिला अपनी इच्छा से जिस्म बेचने का धंधा नहीं करती, रखैल, कीप नहीं बनती । वकील साहिबा पेड़ की पत्तियां तोड़ना चाहतीं हैं, जहरीले पेड़ को जड़ से उखाड़ना नहीं चाहतीं । यह जड़बुद्धि कलमकार उनसे क्या गुजारिश करे । जजों पर खीज उतारने के बजाये उन्हें सजामसुधार पर अपना कीमती वक्त खर्च करना चाहिये ।



La =>जज साहेब ये बेचारी रखैल नहीं है ये तो बस एक शादीशुदा मर्द के साथ लिवइन रिलेशन में है । इस बेचारी का क्या पता कि ये किसी दूसरी औरत का घर/मर्द तोड़ रही है ।

2 Responses to “जग बौराना: लिव इन रिलेशन के सदके”

  1. प्रवीण पाण्डेय said

    तथाकथित नयी सामाजिक परिस्थियों को नाम देने में हिचकिचाहट कैसी।

  2. Dhananjaya said

    Jija Ji Pranam,
    Aaj maine jana ki Aap Kya likhte hain. Maan prasann hua.
    Thanks

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