रामायण बैठी है
Posted by K M Mishra on July 16, 2010
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Posted by K M Mishra on July 16, 2010
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This entry was posted on July 16, 2010 at 12:15 PM and is filed under हिन्दी हास्य व्यंग्य. You can follow any responses to this entry through the RSS 2.0 feed. You can leave a response, or trackback from your own site.
गिरिजेश राव said
प्रभु जी! आप के चरण कहाँ हैं? मुझे धन्य होना है। प्रणाम करना है। (यह मत सोचिएगा कि लात खाना है ;))
बहुत दिनों के बाद इधर आया। क्षमाप्रार्थी हूँ।
girish pankaj said
pahali baar iss blog ko dekh raha hu. aanand aa gaya. blog hai ya cjitravali? sundar pahal. aise blog kam dekhe haimaine. badhai.
jayantijain said
to the point , satire
प्रवीण पाण्डेय said
रामचरितमानस के पाठ का बड़ा ही सुन्दर चित्रण।
zeal [Divya] said
anand-dayak !
singhsdm said
गिरिजेश राव जी के ब्लॉग पर आपकी तारीफ़ सुनी तो सरपट दौड़ लिए आपकी तरफ…..आपके ब्लॉग द्वार पर पहुंचे तो लाउड स्पीकर की आवाज़ कान में पड़ गयी….मानस के पाठ का ऐसा वर्णन आपने किया की दृश्य सजीव हो उठे वो दिन याद आ गए जब रामायण बैठती थी और ऐसे दृश्य सहज ही प्रकट हो जाते थे……! बिलकुल रेनू की पंचलाईट की तरह वर्णन…..!
mayihelpyouonline dot com said
रामायण बैठी है का लेख पढकर मजा आ गया । बिलकुल सत्य लिखा गया है । हमारी तरफ जागरण का प्रोगाम किया जाता है । बच्चों के इिम्तहान थे । जागरण में लाउडस्पीकर की आवाज से परेशान होकर पूरी तरह दरवाजे खिडकियां बन्द कर दी एवं कानों पर रूई लगाई फिर भी आवाज आती रही ।
Kajal Kumar said
सही बात है…आज तो रामायण बैठी ही है
Shiv said
भैया, हम आपके इतने बड़े फैन ऐसे ही नहीं हैं. गज्ज़ब कर दिए हैं आप. हँसते-हँसते हालत बन गई. कस्सम से.
स्वार्थ said
गम्भीर समस्या है ध्वनि प्रदुषण की धर्म के नाम पर और लोग विधार्थियों की परीक्षा के समय भी बाज नहीं आते। अब धर्म बहुत ज्यादा प्रदर्शन की वस्तु बन गया है। और भार्त में तो सभी धर्म एक दूसरे के साथ होड़ में हैं कि कौन ज्यादा तेज आवाज में सबको सुनवा देगा।
इस एक मामले में एक समान कानून की जरुरत है और सभी धर्मों के धर्म स्थलों से लाउड स्पीकर उतर जाने चाहियें और जिसे भी कोई भी कार्यक्रम सार्वजनिक स्थल पर करना हो बिना लाउड स्पीकर के करे।
सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said
गवैयों के बीच से सिर घुसा कर माइक में मुँह सटाकर ‘हेलो-हेलो’ करने वाले चिल्लर लड़कों का जिक्र छूट गया है जो अपने दोस्तों को अलग से अपनी आवाज सुनने के लिए भोंपू के पास बिठा देते हैं:)।
इधर गोरखपुर, इलाहाबाद और लखनऊ में मैने देखा है कि बहुत सी प्रोफ़ेशनल गवैया मण्डली उपलब्ध है जो चौबीस घण्टे का ठेका ले लेती है। चार-चार घण्टे की शिफ़्ट में ये अदल-बदलकर पूरी रामायण निपटा देते हैं। एक रसोइया-महराज भी ये साथ ले आते हैं जो तय समय पर चाय-पानी देता रहता है। मालिक (भक्त/यजमान) को केवल रूपया गिनना रहता है। कोई बहुत शंकालु हुआ तो पन्ने गिनने की ड्य़ूटी अलग से लगा देता है।
मैने लखनऊ में एक बार केवल सुन्दरकाण्ड का पाठ कराया था।, बिना माइक के। बहुत देर तक बैठकर यह अनुमान करता रहा कि ये किस प्रसंग पर पहुँचे हैं लेकिन सफल नहीं हो पाया। मुझे उनका एक भी उच्चारण समझ में नहीं आया। केवल ढम-ढम, झन-झन, चन-चन, क्याँ-क्याँ की मिश्रित ध्वनियाँ कान में टकराती रहीं।
आपने बहुत शानदार चित्रण किया है।
devendra pandey said
जय हो बाबा तुलसी दास की.
जय सुदर्शन हास्य-व्यंग्य की.
..विश्वकप फुटबाल में शकीरा ने जो गाना गाया उस पर भी शोध चल रहा है.
योगेन्द्र सिंह शेखावत said
इस दुःख से हम भी बहुत दुखी हैं भाई साहब | सरे दिन यही खेल चलता है जो आपने लिखा है, और रात में हम खेल जाते हैं …. | मुझे लाउड स्पीकर के इस्तेमाल पर बड़ी आपत्ति है | और अब लाउड स्पीकर का ज़माना भी गया, आजकल तो उच्च क्षमता वाले स्पीकर्स कर प्रयोग किया जाता है जो सर पर लठ मरते से प्रतीत होते हैं |
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Smart Indian - स्मार्ट इंडियन said
लाजवाब! जय राम जी की!
धीरेन्द्र said
व्यंग्य बतौर ये आर्टीकल अच्छा है. लेकिन हिन्दू होने के बतौर बिल्कुल नहीं… जरा अपने यहां कोई मजलिस लगी हो, उसमें आपत्ति उठाकर देखिये, आनन्द आ जायेगा. वहां इससे भी बड़े लाऊडस्पीकर लगते हैं. एक बार विरोध दर्ज जरूर कराइयेगा और एक बार उस पर भी व्यंग्य लिखिये. फिर देखिये कि कितने मुस्लिम आकर आपकी तारीफ करते हैं..
subhash sharma said
आह! हमारी भावनाओं को सटीक प्रस्तुत करने वाला उद्गाता कहाँ छिपा था अब तक?
मानस का यह अवमूल्यन देखकर मन बड़ा रोता है, पर करें तो क्या करें?
K M Mishra said
सुभाष शर्मा टिप्पड़ी के लिए आभार………वाकई मानस जैसे दैवीय ग्रन्थ को किस स्तर पर ले आये हैं हम……देख कर पीड़ा होती है………शुक्र है की कर्मकांड के बहाने ही कुछ तो आयोजित हो रहा है.